How a Baba changed the life of a child


एक छोटे से गाँव में एक झोपड़ी में रहने वाला आठ साल का लड़का  अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा था। माँ बचपन में ही चल बसी और पिता शराब के नशे में डूबे रहते थे। अर्जुन स्कूल जाना चाहता था, पढ़ना चाहता था, पर रोज़ सुबह उसे दूसरों के खेतों में काम करना पड़ता था, ताकि दो वक्त की रोटी जुटा सके।


एक दिन गाँव के पास के मंदिर में एक साधु बाबा आए। सफेद दाढ़ी, शांत मुखमुद्रा और आँखों में गहराई भरी करुणा। उनका नाम था – बाबा । वो हर किसी से प्रेम से मिलते, भूखे को भोजन देते और दुखी को सहारा देते।


अर्जुन भी एक दिन मंदिर आया, क्योंकि उसे भूख लगी थी। उसने बाबा से पूछा, “बाबा, खाने को मिलेगा क्या?”


बाबा मुस्कराए और बोले, “खाने से पहले एक सवाल – तू भूख मिटाना चाहता है या किस्मत?”


अर्जुन हैरान हुआ, लेकिन बोला, “अगर किस्मत बदल जाए तो भूख खुद ही मिट जाएगी।”


बाबा की आंखों में चमक आ गई। उन्होंने अर्जुन को पास बैठाया, खाना खिलाया और बोले, “अगर तुझमें मेहनत करने का साहस है, तो मैं तुझे सिर्फ खाना ही नहीं, भविष्य भी दूँगा।”


अर्जुन की आँखें भर आईं। उस दिन से वह बाबा के साथ मंदिर में रहने लगा। बाबा उसे रोज़ उठाकर योग कराते, पूजा कराते और फिर पढ़ाते। उनके पास किताबें नहीं थीं, लेकिन उनके पास ज्ञान था – जीवन का, गणित का, भाषा का, और सबसे ज़रूरी – आत्मविश्वास का।


बाबा कहा करते – “गरीबी एक हालात है, पहचान नहीं। जो हालात से लड़ना जानता है, वही विजेता बनता है।”


अर्जुन ने पढ़ाई के साथ-साथ सेवा भी सीखी। वो मंदिर की सफाई करता, भक्तों को पानी देता और जब समय मिलता, बाबा से कुछ नया सीखता।


गाँव वाले पहले तो हँसते थे, “एक साधु और एक भिखारी बच्चा क्या कर लेंगे?”

पर जब उन्होंने अर्जुन को संस्कृत श्लोक बोलते और गणित के सवाल हल करते देखा, तो सब चौंक गए।


एक दिन गाँव में शहर से एक बड़ा अफसर आया – शिक्षा विभाग से। उसने बाबा को प्रणाम किया और पूछा, “बाबा, सुना है आप किसी लड़के को पढ़ा रहे हैं, क्या मैं मिल सकता हूँ?”


बाबा मुस्कराए, “वो खुद ही तेरे सवालों का जवाब देगा।”

अर्जुन को बुलाया गया। अफसर ने सवाल पूछे – विज्ञान, गणित, सामान्य ज्ञान… और अर्जुन ने हर सवाल का जवाब आत्मविश्वास से दिया।


अफसर हैरान रह गया, “इस बच्चे ने इतनी कम उम्र में इतना ज्ञान कैसे प्राप्त किया?”

बाबा ने कहा, “श्रद्धा, परिश्रम और सही मार्गदर्शन से कोई भी बच्चा रत्न बन सकता है।”


अर्जुन को शहर के एक बड़े स्कूल में स्कॉलरशिप पर पढ़ने का मौका मिला। लेकिन वह रोज़ मंदिर आकर बाबा से मिलना नहीं छोड़ता था। वह जितना किताबों से सीखता, उतना ही बाबा के अनुभवों से।


सालों बीत गए। अर्जुन ने मेहनत और लगन से पढ़ाई की, इंजीनियरिंग की, फिर विदेश में स्कॉलरशिप पाई। उसके जीवन का मकसद सिर्फ अपनी सफलता नहीं था, बल्कि उस जैसे हजारों बच्चों की मदद करना था।


एक दिन वह एक बड़े मंच पर मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया। वहाँ हजारों लोग बैठे थे। माइक पर आते ही उसने कहा –


> “मैं कोई चमत्कार नहीं हूँ। मैं सिर्फ एक गरीब बच्चा था, जिसे एक बाबा ने छाया दी, दिशा दी, और सबसे बढ़कर – विश्वास दिया।

अगर वो न होते, तो आज मैं यहाँ न होता। उन्होंने न मुझे दान दिया, न सहानुभूति, बल्कि मुझे शिक्षा दी और आत्मबल दिया।”




मंच से उतरते ही मीडिया वाले उसकी ओर दौड़े। किसी ने पूछा, “क्या अब आप अपने गुरु बाबा को मिलने जाते हैं?”


अर्जुन की आँखें भर आईं। उसने कहा, “हर महीने मैं गाँव जाता हूँ, और उनके चरण छूता हूँ। मेरे लिए वो भगवान हैं।”


उसने गाँव में एक बड़ा विद्यालय बनवाया  – जहाँ गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा, भोजन और रहने की सुविधा दी जाती थी।


उस स्कूल के पहले दिन जब बच्चों की कतार लगी थी, तो एक बुज़ुर्ग बाबा, सफेद दाढ़ी और चश्मा लगाए, स्कूल के गेट पर बैठे मुस्करा रहे थे।

बच्चे उनकी तरफ देखकर बोले – “बाबा, आप कौन हैं?”


बाबा बोले – “मैं सिर्फ एक पेड़ हूँ, जिसकी छाँव में एक बीज पनपा था। आज वही बीज एक बग़ीचा बना रहा है।”



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